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छैठि - सूर्यक' उपासना



बिहार, झारखंड आ उत्तर प्रदेश में विशेष पाबनि थिक छैठि। बिहार लगाएत अन्य राज्य के लोक प्राचीन समय सऽ प्राकृतिक रुपे ई पूजा कऽ रहल छैथ। लोक आस्था के पाबनि अछि छैठि जे सूर्य देव के समर्पित अछि। ई पाबनि दियाबाती के बाद चंद्रमास के छठम दिन विस्तार सऽ मनाओल जाय वाला चारि दिनक पाबैन अछि। तेँ छैठि के सूर्य षष्ठी सेहो कहल जाएत अछि। आ इ ओहि सब इलाका में मनाओल जाएत अछि जाहि ठाम इ सब राज्य के प्रवासी सब रहैत छैथ।


छैठि पृथ्वी पर जीवन के नव ऊर्जा देबय लेल, आस्तिक'क इच्छा पूरा करय लेल आ सूर्य के आभारी रहय लेल मनाओल जाएत अछि। मानल जाएत अछि कि सूर्य पूजा सऽ बहुत रोग-व्याधि ठीक भऽ जाय छय, आओर परिवारक' सदस्य, दोस्त आ बुजुर्ग केर दीर्घायु समृद्धि सुनिश्चित होय छय। छैठि पूजा के चारि दिन में मनाओल जाएत अछि :


नहाय खाय : छैठि पूजा के पहिल दिन भक्त सब पवित्र पोखरि में डुबकी लगाबैत छथि, आ पवित्र जल के घर लाबि कऽ सूर्य के लेल चढ़ाबय वाला प्रसाद तैयार करैत छैथ। घर के महिला सब व्रत के पालन करैत छैथ जेकरा व्रती कहल जाय छै आ अहि दिन, मात्र एक बेर व्रती भोजन ग्रहण करैत छैथ।


खरना : खरना दिन व्रती सब दिन भरि व्रत राखैत छैथ आ साँझ में, सूर्यास्त के कनि काल बाद व्रती सब पूजा करैत छैथ व पूजा समाप्ति के बाद खीर-पूरी आ केरा के प्रसाद ग्रहण करैत छैथ। बाद में ओहि प्रसाद के परिवार आ मित्र लोकनि सभक' बीच बांटल जाएत अछि। फेर अगिला 36 घंटा लेल व्रती सब बिना पानि के व्रत पर चलि जाएत छैथ।


सझुंका अर्घ : घर में भरि दिन प्रसाद तैयार करबा में बीतैत अछि। एहि दिनक' पूर्व संध्या पर पूरा घर मे व्रती सभक संग कोनो पोखरि के कात वा कोनो आम पैघ जल निकाय में अर्घ दैत छैथ, आ अस्त सूर्य के चढ़ाओल प्रसाद ग्रहण काएल जाएत छैक। छठि पूजा के एहि दिन भक्त लोकनि डूबैत सूर्य के प्रार्थना करैत छैथ। ई अवसर लगभग समापन के रहैत अछि। छैठि के साँझ में गाओल जाए वला लोकगीत में सब ठामक संस्कृति, सामाजिक संरचना, पौराणिक कथा आ इतिहास के झलकि भेटैत अछि । बिहार के तीन मुख्य भाषाई क्षेत्र; मैथिली, मगधी आ भोजपुरी व एहि सब सऽ जुड़ल सब विभिन्न बोली के अलग-अलग लोकगीत अछि, मुदा छैठि के समर्पण में एकटा अंतर्निहित एकता अछि। अई पाबनि में सब बराबर होय छय आ कोनो तरहक भेदभाव नय देखल जाएत अछि।


भोरका अर्घ : छैठि के अंतिम दिन लोक उगैत सूर्य के अर्घ देबय लेल सूर्योदय सऽ पहिने पोखरि के कात में जाएत छैथ। व्रती द्वारा व्रत तोड़ला सँ पाबनि समाप्त होइत अछि। मित्र लोकनि प्रसाद ग्रहण करबाक लेल व्रती लोकनिक घर जाएत छैथ। प्रसाद लेबाक भाग एतेक जरूरी अछि जे छैठि घाट पर करोड़पति सेहो एकरा लेल हाथ बढ़बैत छैथ जे ई प्रतीक छैक जे सर्वशक्तिमान के सामने सब बराबर छैक।


छैठि पाबनि एकमात्र समय होइत अछि जखन डूबैत सूर्य के अपन वैभव के लेल मनाओल जाएत अछि, कारण हिन्दू धर्म में गहींर जड़ि जमा लेने पुनर्जन्म के सिद्धांत के अनुसार जन्म के चक्र मृत्यु सऽ शुरू होइत अछि। छैठि पाबैन एकमात्र एहन पाबैन अछि जाहि में नेम-निष्ठा आ समर्पण सम्मिलित अछि।









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