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द्वापर युग सऽ अखन धरि मनाओल जा रहल अछि भाए-बहिनक पाबनि सामा-चकेबा

मिथिला में भाए-बहिनक पाबनि सामा-चकेवा द्वापर युग सऽ चलैत आबि रहल अछी। भाए-बहिनक इ सबसऽ पैघ पाबनि छैक जे छैठक' परणा सऽ कार्तिक पूर्णिमा धरि मनाओल जाएत अछी। नौ दिनक अहि पाबनि में बहिन सब भाए लेल दीर्घायु आ संपन्नता केर मंगलकामना करैत छैथ। अहि पाबनि मादे एगोट द्वापर युगक पौराणिक कथा चहुदिस प्रचलित अछि जे निच्चा पढ़ि सकैत छी:

द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण के पोती श्यामा आ पोता शांभ के बीच अथाह स्नेह छलैक। श्यामा के वियाह ऋषि कुमार चारूदत्त सऽ होवाक पश्चात् ओ ऋषि-मुनि सभक सेवा लेल आश्रम जाएत-आबैत छलिह।


मुदा भगवान श्री कृष्ण के एगोट दुष्ट स्वभाव के मंत्री चुरक के इ नीक नै लागलनि आ ओ कृष्ण जीक कान भरनाइ शुरू केलक।


तकर परिणाम स्वरुप एकदिन तमसा कऽ भगवान श्री कृष्ण अपन पोती श्यामा के चिड़ै/पक्षि बनवाक श्राप दऽ देलखिन। इ देखि श्यामा के पति के रहल नै गेलनि आ महादेव के पूजि कऽ हुनका खुश करैत ओहो चिड़ै/पक्षि के रूप में आबि गेलाह। इ सब देखि भगवान श्री कृष्ण के पोता शांभ के रहल नै गेलनि आ ओ अपन भगवान श्री कृष्ण जीके पूजा-अर्चना शुरू कऽ देलखिन। भगवान श्री कृष्ण फेर खुश भऽ कऽ वरदान पूछलखिन त' शांभ अपन बहिन-बहिनोई के कम सऽ कम आठ दिन लेल मानव शरीर धारण करवाक वर मांगलैथ।


ताहि दिन सऽ आइ धरि सामा-चकेवा के आठ दिनक पूजाक' बाद नौवम् दिन जोताएल खेत में भसाओल जाएत छैक।


छैठक पारण दिन सऽ मिथिला में बहिन सब अपने सऽ बना कऽ या बाजार सऽ माटिक सामा-चकेवा, चुगिला (चुरक), वृंदावन, भमरा, सतभैया, बटतकनी, ढ़ोलिया, झांझी-कुकूर आदिके प्रतिमा खरीद बांसक चंगेरा में सजा कऽ गाम-टोल में एकजुट भऽ मैथिली लोकगीत संग सामा खेलाएत छैथ।


नौवम् दिन नवका कपड़ा पहिरा सामा लगाएत सबके नवका धानक चुड़ा आ दही खुवाएल जाएत छनि। लोकगीत सब द्वारा चुगिला के गरियाओल जाएत छैक आ कहबी छय जे चुगिला के गरिएला सऽ भाएक ओरदा बढ़ैत छैक।

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